दिल ने चाहा मगर ,
दिल की कौन सुनता है ?
कदम बढे रहाइश की और
दिल में बसी उमंग है ,
इंतजार शुरू किया इफ्तिकार से ,
पर इंतजार इम्तहान बन गया है …
दिल ने चाहा मगर ,
दिल की कौन सुनता है ?
जिससे मोहब्बत की थी जनाब ,
धुंदला उसका नफ़्स है ,
आयने के परामर्श से शुरू किया प्यार ,
दीवाने हम नहीं , आयना बन गया है …
दिल ने चाहा मगर ,
दिल की कौन सुनता है ?
ज़ालिम इस दुनिया में ,
कही साप , कही सपेरा है ,
खुदा की इख़्तियार से शुरू किया कर्म ,
हे मंज़िल – इ – मक़सूद ,
आज क़ाबलियत का लुटेरा ,
छोटासा कीटाणु बन गया है …